एक व्यंग्य - जब मच्छर काटे तो सही और मैं अपने बचाव में कुछ करु तो मैं असहिष्णु.... कैसे?
हैलो मित्रों,
मेरा नाम ध्रुव दुबे है, आशा है कि आप और आपके परिवार में सभी अच्छे होंगे।
एक व्यंग्य - मच्छरों को आज़ादी और मैं असहिष्णु हूँ... कैसे? जब कुछ मच्छरों ने कहा "मैं असहिष्णु हो गया हूं।
मैं शांति से बैठा इंटरनेट चला रहा था...b
तभी कुछ मच्छर आए और मेरा खून चूसने लगे, फिर प्राकृतिक प्रतिक्रिया में मेरा हाथ उठा और फट गया।
और एक-दो मच्छर ढेर हो गए... फिर क्या था शोर मचाने लगे कि, मैं असहिष्णु हो गया हूं..
मैंने पूछा.., "इसमें असहिष्णुता की क्या बात है..?"
वो कहने लगे.., ''खून चूसना उनकी आज़ादी है..''
"आज़ादी" शब्द सुनते ही कई बुद्धिजीवी उनके पक्ष में उतर आए और बहस करने लगे.. इसके बाद नारेबाजी शुरू हो गई..
*कितने मच्छर मारोगे..
हर घर से मच्छर निकलेंगे।"*
बुद्धिजीवियों ने तीखी बहस के साथ अखबार में बड़े-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया।
उन्होंने कहा कि.., शरीर पर मच्छर मौजूद थे लेकिन खून चूस रहे थे, यह कहां साबित हुआ है..
और अगर आप चूस रहे थे तो भी गलत हो सकता है लेकिन यह देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता है।
क्योंकि ये "मच्छर" बहुत प्रगतिशील रहे हैं.. किसी के शरीर पर बैठना उनकी 'चिंता' रही है।
मैंने कहा.., "मैं अपना खून चूसने नहीं दूँगा।"
तो कहने लगे.., ''ये है ''बेहद देह का प्यार''... तुम दीवाने हो, बहस से भाग रहे हो.''
मैंने कहा..., "आपका उदारवाद आपको मेरा खून चूसने नहीं दे सकता।"
इस पर उनका तर्क था कि भले ही यह गलत हो, लेकिन फिर भी थोड़ा सा खून चूसने से आपकी मौत नहीं होती, बल्कि आपने मासूम मच्छरों की जिंदगी छीन ली है।
"फेयर ट्रायल" का मौका भी नहीं दिया।
उसी समय कुछ राजनेता भी आ गए और वे उन मच्छरों को अपने बगीचे के 'बहार' के पुत्र बताने लगे।
हालात से हैरान और परेशान मैंने कहा लेकिन ऐसे..
मलेरिया मच्छरों को खून चूसने देने से होता है।
और देर-सबेर वह बीमार और कमजोर हो जाता है और मर जाता है...
इस पर वह कहने लगे कि..तुम्हारे पास तर्क नहीं है, इसलिए तुम भविष्य की कल्पनाओं के आधार पर अपने फासीवादी फैसले को सही ठहरा रहे हो, यह काम नहीं करेगा।
इस बात के जवाब में वह कहने लगा कि.., मच्छर समाज के प्रति अपनी नफरत का बहाना बनाकर इतिहास रच रहा हूं.. जबकि मुझे वर्तमान में जीना चाहिए.
इतने हंगामे के बाद उन्होंने मेरे ही सिर पर माहौल खराब करने का आरोप भी लगाया।
मेरे खिलाफ मेरे कान में घुसकर सारे मच्छर फूटने लगे कि..."हम आज़ादी लेंगे..."
मैं वाद-विवाद और वाद-विवाद में पड़कर परेशान हो जाता था... खून चूसने से ज्यादा।
अंत में मुझे तुलसी बाबा की याद आई.. "साठ सूर्य विनय शैतान सूर्य प्रीति"
और फिर मैंने *काला हिट स्प्रे* उठाया और इसे पूरे घर में अंदर से बाहर तक, ऊपर से नीचे तक, बगीचे से नाले तक उनके हर परिष्कृत और गुप्त स्थान पर स्प्रे किया ...
एक बार यह तेजी से बदल गया.. फिर सब शांत हो गया..😄😄
तब से..
कोई बहस नहीं...
कोई विवाद नहीं...
परतन्त्रता...
कोई बर्बादी नहीं...
कोई क्रांति नहीं...
कोई मतलब नही...
अब सब ठीक है.. दुनिया का यही तरीका है
यह पोस्ट पूरी तरह से काल्पनिक नहीं है।
0 Comments