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भाव बस भगवान - असफल, हताश और निरास व्यक्ति के लिए एक छोटी सी प्रेरक कहानी - ध्रुव देव दुबे

भाव बस भगवान  - असफल,  हताश और निरास व्यक्ति के लिए एक छोटी सी प्रेरक कहानी 


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दोस्तों मैं आज आपको एक छोटी सी कहानी सुनाने वाला हूं, यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसके दुनिया मे सब कुछ बुरा हो रहा था, बहुत सारे कर्ज़ हो गए थे, नौकरी चली गई थी, घरवालों से कुछ अच्छे तालुकात नहीं थे, मतलब वह धीरे-धीरे परेशानी की तरफ बढ़ता चला जा रहा था लेकिन उस इंसान की आदत थी की वह भगवान को नहीं मानता था।

उससे काफी बार लोगों ने उससे कहा की कुछ पूजा पाठ किया करो सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन वह मानता नहीं था। तभी एक दिन उसका एक अच्छा दोस्त उससे मिलने आया, और कहां कि,  मेरे दोस्त मेरी अगर एक बात मानो तो, मैं एक बात बोलूं । आज से तुम भगवान श्री कृष्ण जी की पूजा करना शुरू करो,  मैं आपको विश्वास दिलाता हूं की तुम्हारी जिंदगी में निश्चित तौर पर बदलाव आना शुरू हो जाएगा । इस पर उसने पहले तो मना किया और बहुत आनाकानी की, और कहा की,  कोई भगवान नहीं होता, यह सब अपने कर्मों पर होता है। 

बाद में घर जाकर के सोचा की मेरी जिंदगी में वैसे ही सब कुछ बुरा ही तो चल रहा है, हो सकता हो की कुछ परिवर्तन हो जाए, और, अगले दिन, सुबह ही,  वह बाजार गया और वहां से भगवान श्री कृष्ण जी की एक मूर्ति लेकर अपने घर आया और उनकी विधिवत स्थापना की। पूजा पाठ करने लगा, 1 महीने बीत गए, 2 महीने बीत गए, 6 महीने बीत गए,  और इस तरह से साल भर निकल गए परंतु उसके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया और वह भगवान को कहता रहा कि आपकी इतनी पूजा करता हूं आपको कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है।

और इस पर उसने और गुस्से में ज्यादा पूजा पाठ करने लगा लेकिन उसका भगवान को कोसना बंद नहीं हुआ की मैं आपकी रोज पूजा कर रहा हूं आप सुनते तो हो नहीं और इस तरह से डेढ़ से 2 साल बीत गए लेकिन उसके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया।

लगभग 2 साल के बाद उसको एक नया दोस्त मिला, और उसके दोस्त ने कहा तुम किसकी पूजा कर रहे हो,  उसने कहा, भगवान श्री कृष्ण की, तब उसके दोस्त ने कहा, तुम्हे मां काली की पूजा करनी चाहिए, मेरा विश्वास है की मां काली तुम्हारे सब दुख दर्द दूर कर देंगी, और,  इस पर उसने अपने दोस्त के कहे अनुसार अगले दिन बाजार से मां काली की एक मूर्ति लाया और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति की जगह पर मां काली मूर्ति को स्थापित करके पूजा करना शुरू कर दिया। और, भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को उसने ठीक पूजा की अलमारी के ऊपर वाली पटरी पर रख दिया। तभी, एक दिन उसको ध्यान आया कि, जो मैं अगरबत्ती मां काली के लिए जलाता हूं उसका धुआं भगवान श्री कृष्ण को भी लग रही हैं,  इसलिए, उसने सोचा, क्यों ना भगवान श्री कृष्ण के मुंह और नाक को बंद कर दिया जाए जिससे उनको धुआं ना लगे।

और, उस व्यक्ति ने जैसे ही एक कपड़ा लाकर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को जैसे ही बांधने का प्रयास किया तभी भगवान ने उसके हाथ को पकड़ लिया, इस पर, उस व्यक्ति को बहुत आश्चर्य हुआ, कि जिस भगवान को मैं सालों साल पूजा की उन्होंने कभी दर्शन तो दूर की बात मेरी कोई भी बात नहीं सुनी, और मैंने जब इनकी पूजा बंद कर दी और आज जब उनके मुंह को बंद कर रहा हूं तो उन्होंने मुझे साक्षात दर्शन दे दिया। 

जिज्ञासा बस, उस व्यक्ति ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, भगवान, मैंने आपकी रोज पूजा की, आप से गुहार लगाई, लेकिन आपने तब नहीं सुना, आज आपने साक्षात दर्शन दे दिया, ऐसा क्यों? 

तब भगवान ने बोला, जो तुमने डेढ़ से 2 साल पूजा की, तुमने एक मूर्ति पूजा की, लेकिन आज तुम्हें यकीन हुआ,  या,  यूं कहें कि तुम्हें विश्वास हुआ कि तुम्हारे घर में तुम्हारे अलमारी पर भगवान बैठे हुए हैं, तुम्हें लगा कि धुआं ऊपर जाता है जिसके कारण भगवान को भी धुआं लग रहा होगा, और, इसलिए तुमने एक कपड़ा लेकर एक मूर्ति को नहीं, बल्कि, एक भगवान को धुआं से बचाने के लिए आ गए। तुमने मेरी मुंह बांधने की कोशिश की, क्योंकि, तुम्हें विश्वास हुआ कि, मैं(भगवान) तुम्हारे घर में हूं, इसलिए जहां तुम्हारा विश्वास प्रगाढ़ हुआ वही मैंने तुम्हें दर्शन दे दिए। 

निस्कर्ष 
ये एक छोटी सी कहानी है इसका सार यह है कि "भाव बस भगवान"। जिस दिन आपके हृदय में भावना जागृत हो गई उस दिन भगवान आपको दर्शन देगा, और आपकी जिंदगी में बदलाव आने शुरू हो जाएंगे। और यदि आप, एक मूर्ति मानकर पूजा करते रहेंगे तो कोई परिवर्तन नहीं आने वाला। इसीलिए मैं आप से कहता हूं की पांच तत्वों (छिति, जल, पावक, गगन, समीर) से हम बने हैं, लेकिन जो सफलता है, वह तीन तत्वों से बनी है। १. ऊपर वाले (भगवान) की आशीर्वाद के साथ, २. अपनी सच्ची मेहनत के साथ और, ३. अपनी फैमिली के प्यार के साथ। 

इसलिए कर दिखाओ कुछ ऐसा की दुनिया करना चाहे कुछ आपके जैसा।

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तब तक के लिए स्वस्थ रहें, सुखी रहे, धन्यवाद। जय हिंद।

ध्रुव देव दुबे
स्वतंत्र लेखक और एचआर
7892530528

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